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Sukhdev biography in hindi | सुखदेव का जीवन परिचय

 Sukhdev Biography in hindi sukhdev ki jivni hindi me सुखदेव का जीवन परिचय

Sukhdev Biography In Hindi

सुखदेव की जीवनी


सुखदेव (वर्ष 1907-1931) एक प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी थे, जिन्होंने स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक प्रमुख भूमिका निभाई थी। वह उन महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में से हैं, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया। इनका पूरा नाम सुखदेव थापर है 

सुखदेव का जन्म एवं प्रारम्भिक जीवन

सुखदेव थापर का जन्म पंजाब के लुधियाना शहर में चौरा बाज़ार के नौघर क्षेत्र में 15 मई 1907 को हुआ था , इनकी माता बेहद धार्मिक प्रवृत्ति की महिला थी . सुखदेव केवल 3 वर्ष के थे जब इनके पिता की मृत्यु हो गई , उसके बाद इनके ताया जी लाला अचिन्त राम ने इनका पालन पोषण किया . आर्य समाज में जन्मे सुखदेव थापर बचपन से ही ब्रिटिश शासनकाल में भारतीयों पर हो रहे अत्याचारों से बेहद दुखी थे इन्होने बचपन से ही देश की सेवा करना और उसे मुक्त कराना अपना प्रथम कर्तव्य माना और निर्णय लिया कि अपना जीवन देश की स्वतंत्रता के लिए समर्पित करेंगे यह लक्ष्य निर्धारित किया . ये पंडित रामप्रसाद बिस्मिल और चंद्रशेखर आजाद से बेहद प्रभावित थे.


सुखदेव की शिक्षा

सुखदेव का प्रारम्भिक शिक्षा लायलपुर में हुई। बाद में आगे की पढ़ाई के लिये इन्होंने नेशनल कॉलेज में प्रवेश लिया। नेशनल कॉलेज की स्थापना पंजाब क्षेत्र के काग्रेंस के नेताओं ने की थी, जिसमें लाला लाजपत राय प्रमुख थे। इस कॉलेज में अधिकतर उन विद्यार्थियों ने प्रवेश लिया था जिन्होंने असहयोग आन्दोंलन के दौरान अपने स्कूलों को छोड़कर असहयोग आन्दोलन में भाग लिया था।


सुखदेव का क्रांतिकारी जीवन

वर्ष 1926 में लाहौर में ‘नौजवान भारत सभा’ का गठन हुआ। इसके मुख्य योजक सुखदेव, भगत सिंह, यशपाल, भगवती चरण व जयचन्द्र विद्यालंकार थे। असहयोग आन्दोलन’ की विफलता के पश्चात् ‘नौजवान भारत सभा’ ने देश के नवयुवकों का ध्यान आकृष्ट किया। प्रारम्भ में इनके कार्यक्रम नौतिक, साहित्यिक तथा सामाजिक विचारों पर विचार गोष्ठियाँ करना, स्वदेशी वस्तुओं, देश की एकता, सादा जीवन, शारीरिक व्यायाम तथा भारतीय संस्कृति तथा सभ्यता पर विचार आदि करना था।

इसके प्रत्येक सदस्य को शपथ लेनी होती थी कि वह देश के हितों को सर्वोपरि स्थान देगा। परन्तु कुछ मतभेदों के कारण इसकी अधिक गतिविधि न हो सकी।  अप्रैल, 1928 में इसका पुनर्गठन हुआ तथा इसका नाम ‘नौजवान भारत सभा’ ही रखा गया तथा इसका केन्द्र अमृतसर बनाया गया।

केंन्द्रीय समिति का निर्माण –

सितम्बर, 1928 में ही दिल्ली के फ़िरोजशाह कोटला के खण्डहर में उत्तर भारत के प्रमुख क्रांतिकारियों की एक गुप्त बैठक हुई। इसमें एक केंन्द्रीय समिति का निर्माण हुआ। संगठन का नाम ‘हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी’ रखा गया।  सुखदेव को पंजाब के संगठन का उत्तरदायित्व दिया गया।

सुखदेव के परम मित्र शिव वर्मा, जो प्यार में उन्हें ‘विलेजर’ कहते थे, के अनुसार भगत सिंह दल के राजनीतिक नेता थे और सुखदेव संगठनकर्ता, वे एक-एक ईंट रखकर इमारत खड़ी करने वाले थे। वे प्रत्येक सहयोगी की छोटी से छोटी आवश्यकता का भी पूरा ध्यान रखते थे। इस दल में अन्य प्रमुख व्यक्ती थे-

  • चन्द्रशेखर आज़ाद
  • राजगुरु
  • बटुकेश्वर दत्त

भारतीय स्‍वतंत्रता संग्राम (1857-1947) –

  • असहयोग आंदोलन :

सितम्‍बर 1920 से फरवरी 1922 के बीच महात्‍मा गांधी तथा भारतीय राष्‍ट्रीय कॉन्‍ग्रेस के नेतृत्‍व में असहयोग आंदोलन चलाया गया, जिसने भारतीय स्‍वतंत्रता आंदोलन को एक नई जागृति प्रदान की।  जलियांवाला बाग नर संहार सहित अनेक घटनाओं के बाद गांधी जी ने अनुभव किया कि ब्रिटिश हाथों में एक उचित न्‍याय मिलने की कोई संभावना नहीं है।

इसलिए उन्‍होंने ब्रिटिश सरकार से राष्‍ट्र के सहयोग को वापस लेने की योजना बनाई| इस प्रकार असहयोग आंदोलन की शुरूआत की गई और देश में प्रशासनिक व्‍यवस्‍था पर प्रभाव हुआ। यह आंदोलन अत्‍यंत सफल रहा, क्‍योंकि इसे लाखों भारतीयों का प्रोत्‍साहन मिला। इस आंदोलन से ब्रिटिश प्राधिकारी हिल गए।

  • साइमन कमीशन:

असहयोग आंदोलन असफल रहा। इसलिए राजनैतिक गतिविधियों में कुछ कमी आ गई थी। साइमन कमीशन को ब्रिटिश सरकार द्वारा भारत सरकार की संरचना में सुधार का सुझाव देने के लिए 1927 में भारत भेजा गया। इस कमीशन में कोई भारतीय सदस्‍य नहीं था और सरकार ने स्‍वराज के लिए इस मांग को मानने की कोई इच्‍छा नहीं दर्शाई। अत: इससे पूरे देश में विद्रोह की एक चिंगारी भड़क उठी

तथा कांग्रेस के साथ मुस्लिम लीग ने भी लाला लाजपत राय के नेतृत्‍व में इसका बहिष्‍कार करने का आव्‍हान किया।  इसमें आने वाली भीड़ पर लाठी बरसाई गई और लाला लाजपत राय, जिन्‍हें शेर – ए – पंजाब भी कहते हैं, एक उपद्रव से पड़ी चोटों के कारण शहीद हो गए।

  • नागरिक अवज्ञा आंदोलन :

महात्‍मा गांधी ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन का नेतृत्‍व किया, जिसकी शुरूआत दिसंबर 1929 में कांग्रेस के सत्र के दौरान की गई थी। इस अभियान का लक्ष्‍य ब्रिटिश सरकार के आदेशों की संपूर्ण अवज्ञा करना था। इस आंदोलन के दौरान यह निर्णय लिया गया कि भारत 26 जनवरी को पूरे देश में स्‍वतंत्रता दिवस मनाएगा। अत: 26 जनवरी 1930 को पूरे देश में बैठकें आयोजित की गई और कांग्रेस ने तिरंगा लहराया।
ब्रिटिश सरकार ने इस आंदोलन को दबाने की कोशिश की तथा इसके लिए लोगों को निर्दयतापूर्वक गोलियों से भून दिया गया, हजारों लोगों को मार डाला गया। गांधी जी और जवाहर लाल नेहरू के साथ कई हजार लोगों को गिरफ्तार किया गया।  परन्‍तु यह आंदोलन देश के चारों कोनों में फैल चुका था। इसके बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा गोलमेज सम्‍मेलन आयोजित किया गया और गांधी जी ने द्वितीय गोलमेज सम्‍मेलन में लंदन में भाग लिया।परन्‍तु इस सम्‍मेलन का कोई नतीजा नहीं निकला और नागरिक अवज्ञा आंदोलन पुन: जीवित हो गया। इस समय, विदेशी निरंकुश शासन के खिलाफ प्रदर्शन स्वरूप दिल्ली में सेंट्रल असेम्बली हॉल (अब लोकसभा) में बम फेंकने के आरोप में भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरू को गिरफ्तार किया गया था। 23 मार्च 1931 को उन्हें फांसी की सजा दे दी गई।

  • लाहौर षड़यंत्र :

18 दिसंबर 1928 के लाहौर षड़यंत्र के मामले में इनके उल्लेखनीय योगदान के लिए, उन्हें आज भी याद किया जाता है।

सुखदेव के बारे में रोचक बातें

  • सुखदेव को उनके मित्र भगत सिंह की तुलना में कम लोग जानते है और उनके बारे में इतिहास में कम ही लिखित है जबकि ये एक असाधरण व्यक्तित्त्व एवं एक निर्भय क्रन्तिकारी थे . इन्हें इनकी पार्टी के सदस्यों की हर छोटी से छोटी जरुरत की चिंता रहती थी और ये पार्टी के प्रत्येक सदस्य का ध्यान रखते थे .
  • सुखदेव थापर के लाहौर षड्यंत्र मामले का जब खुलासा हुआ तब वे तुरंत गिरफ्त्तार कर लिए गए तब उनका कहना था कि वे अपनी इन गुप्त गतिविधियों के उजागर होने से बेहद खुश है और इन सब के बाद जब उनकी गिरफ़्तारी हुई और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई तब उन्हें इस बात का कोई रंज गम नही था उनका मानना था कि ये बलिदान देश में एक नई चिंगारी पैदा करेगा .
  • सुखदेव थापर ने एक बार अपने हाथ पर बने ओम के टेटू को मिटाने के लिए नाईट्रिक एसिड डाल लिया था इससे वे अपना सहनशक्ति का परिक्षण करना चाहते थे और इसके शेष हिस्से को मिटाने के लिए घाव को जलती हुई मोमबत्ती पर रख जला दिया था .
  • सुखदेव थापर और भगत सिंह घनिष्ट मित्र थे दोनों का जन्म साथ में हुआ साथ ही दोनों ने अध्ययन किया और क्रांतिकारी बन स्वतंत्रता आन्दोलन में शामिल हुए और देश की आजादी के लिए दोनों एक साथ फांसी के तख्ते पर चढ़ गए और अपना जीवन कुर्बान कर दिया

सुखदेव की मृत्यु

दिल्ली में सेंट्रल असेंबली हॉल में बमबारी करने के बाद सुखदेव और उनके साथियों को पुलिस ने पकड़ लिया था और उन्होंने मौत की सजा सुनाई गयी थी। 23 मार्च 1931 को सुखदेव थापरभगत सिंह और शिवराम राजगुरु को फाँसी दी गयी थी और उनके शवो को रहस्यमयी तरीके से सतलज नदी के किनारे पर जलाया गया था। सुखदेव ने अपने जीवन को देश के लिये न्योछावर कर दिया था और सिर्फ 24 साल की उम्र में वे शहीद हो गए थे।

भारत को आज़ाद कराने के लिये अनेकों भारतीय देशभक्तों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी। ऐसे ही देशभक्त शहीदों में से एक थेसुखदेव थापरजिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन भारत को अंग्रेजों की बेंड़ियों से मुक्त कराने के लिये समर्पित कर दिया। सुखदेव महान क्रान्तिकारी भगत सिंह के बचपन के मित्र थे। दोनों साथ बड़े हुयेसाथ में पढ़े और अपने देश को आजाद कराने की जंग में एक साथ भारत माँ के लिये शहीद हो गये।

23 मार्च 1931 की शाम 7 बजकर 33 मिनट पर सेंट्रल जेल में इन्हें फाँसी पर चढ़ा दिया गया और खुली आँखों से भारत की आजादी का सपना देखने वाले ये तीन दिवाने हमेशा के लिये सो गये।

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